चाहे जितनी दे दौलत हमें मंजूर नहीं, बेवसूल की सियासत हमें मंजूर नहीं,
जहां हुंकार, भरी वहीं पे गया वक्त सिहर, हमने हर दौर के जालिम से ली है टक्कर,
कभी ‘‘बापू’’ कभी ‘‘भगत’’ कभी ‘‘जयप्रकाश’’ बनकर,
हमारे सीने में रोशन है चिराग-ए-लोहिया, हो कहीं भी, जुल्मत हमें मंजूर नहीं,
बेवसूल की सियासत हमें मंजूर नहीं,
हमारे वास्ते कोई नहीं पराया है, जब भी सितम का घनेरा गहराया है,
लहू दे के भी हर हाल जलाया है,
”अन्याय“ के खिलाफ समाजवाद का दिया, झुके परचम-ए-सदाकत, हमें मंजूर नहीं है।
गैर बराबरी दुनिया-जहाँ से मिटाया जाये, जो है कमजोर उन्हें हर सिम्त उठाया जाये,
नारी ‘‘अबला’’ न रहे वो विधान चलाया जाये, हम यही कहते रहे और ”जो कहा सो किया“
झूठी ताकत की हिमायत, मुझे मंजूर नहीं,बेवसूल की सियासत हमें मंजूर नहीं,
अपने घर में रोटी जब भी पकाया, भूखे पड़ोसी को भी बुलाकर खिलाया, धर्म व जाति का अंतर नजर न आया, जो भी मिला राह में गले लगा लिया,
हो कहीं भी नफरत, हमें मंजूर नहीं, झुके परचम-ए-सदाकत, हमें मंजूर नहीं।