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स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
चाहे जितनी दे दौलत हमें मंजूर नहीं..
-दीपक मिश्र
दीपक मिश्र

चाहे जितनी दे दौलत हमें मंजूर नहीं, बेवसूल की सियासत हमें मंजूर नहीं,
जहां हुंकार, भरी वहीं पे गया वक्त सिहर, हमने हर दौर के जालिम से ली है टक्कर,
कभी ‘‘बापू’’ कभी ‘‘भगत’’ कभी ‘‘जयप्रकाश’’ बनकर,
हमारे सीने में रोशन है चिराग-ए-लोहिया, हो कहीं भी, जुल्मत हमें मंजूर नहीं,
बेवसूल की सियासत हमें मंजूर नहीं,
हमारे वास्ते कोई नहीं पराया है, जब भी सितम का घनेरा गहराया है,
लहू दे के भी हर हाल जलाया है,
”अन्याय“ के खिलाफ समाजवाद का दिया, झुके परचम-ए-सदाकत, हमें मंजूर नहीं है।
गैर बराबरी दुनिया-जहाँ से मिटाया जाये, जो है कमजोर उन्हें हर सिम्त उठाया जाये,
नारी ‘‘अबला’’ न रहे वो विधान चलाया जाये, हम यही कहते रहे और ”जो कहा सो किया“
झूठी ताकत की हिमायत, मुझे मंजूर नहीं,बेवसूल की सियासत हमें मंजूर नहीं, अपने घर में रोटी जब भी पकाया, भूखे पड़ोसी को भी बुलाकर खिलाया, धर्म व जाति का अंतर नजर न आया, जो भी मिला राह में गले लगा लिया, हो कहीं भी नफरत, हमें मंजूर नहीं, झुके परचम-ए-सदाकत, हमें मंजूर नहीं।

डॉ0 लोहिया की कलम से
‘‘भारत की आजादी के लिए डा0 लोहिया ने कई बार कारावास की कठोर व क्रूर यातनायें झेली लेकिन स्वतंत्रता का कंटकाकीर्ण पथ नहीं छोड़ा। 1944-45 में उन्हें आगरा सेण्ट्रल जेल में बंदी बनाकर भयंकर पीड़ा दी गई जिसका वर्णन उन्होंने अपने वकील श्री मदन पित्ती को दिए गए वक्तव्य में किया है। 27 अक्टूबर 1945 को आगरा की जेल में दिए गए इस ऐतिहासिक बयान से स्पष्ट होता है कि ब्रिटानिय...