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स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
बर्फ की चपेट में
-डॉ0 यास्मीन सुलताना नक़वीं
डॉ0 यास्मीन सुलताना नक़वीं बड़ा हौलनाक मंज़र था, नए लोगों के लिए खुदा की कसम,
खुदा का करिश्मा देखिए, झूल रहे थे तराज़ू के दो पल्ले,
एक था पल्ला ‘बादल’ एक था पल्ला ‘सूरज’
जिसमें एक तरफ, तुल रही थी गिर-गिर कर बर्फीली चद्दर की चद्दर
दूसरे पल्ले में सूरज की छड़े और सरिया
और स्वर्णिम रंग में रँगे झिलमिलाते इन्द्रधनुषी कण-कण
बड़े मासूम थे ये मेरे गमले में लगे कैक्ट्स गोल-मटोल!
बर्फबारी की चपेट में, आकर रोड रोलर जैसे जो गए
जल कर बन गए ये तले हुए बे्रड रोल
लगता है अब न खिलेगा, उनका मुर्झाया चेहरा कल तक
जो खड़े थे जैसे साँची के स्तूप
सूख गए ऐसे जैसे निर्जीव नीरस कूप।
डॉ0 लोहिया की कलम से
‘‘भारत की आजादी के लिए डा0 लोहिया ने कई बार कारावास की कठोर व क्रूर यातनायें झेली लेकिन स्वतंत्रता का कंटकाकीर्ण पथ नहीं छोड़ा। 1944-45 में उन्हें आगरा सेण्ट्रल जेल में बंदी बनाकर भयंकर पीड़ा दी गई जिसका वर्णन उन्होंने अपने वकील श्री मदन पित्ती को दिए गए वक्तव्य में किया है। 27 अक्टूबर 1945 को आगरा की जेल में दिए गए इस ऐतिहासिक बयान से स्पष्ट होता है कि ब्रिटानिय...