स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
बर्फ की चपेट में
-डॉ0 यास्मीन सुलताना नक़वीं
बड़ा हौलनाक मंज़र था, नए लोगों के लिए खुदा की कसम,खुदा का करिश्मा देखिए, झूल रहे थे तराज़ू के दो पल्ले,
एक था पल्ला ‘बादल’ एक था पल्ला ‘सूरज’
जिसमें एक तरफ, तुल रही थी गिर-गिर कर बर्फीली चद्दर की चद्दर
दूसरे पल्ले में सूरज की छड़े और सरिया
और स्वर्णिम रंग में रँगे झिलमिलाते इन्द्रधनुषी कण-कण
बड़े मासूम थे ये मेरे गमले में लगे कैक्ट्स गोल-मटोल!
बर्फबारी की चपेट में, आकर रोड रोलर जैसे जो गए
जल कर बन गए ये तले हुए बे्रड रोल
लगता है अब न खिलेगा, उनका मुर्झाया चेहरा कल तक
जो खड़े थे जैसे साँची के स्तूप
सूख गए ऐसे जैसे निर्जीव नीरस कूप।