स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
पासपोर्ट
-अमिताभ ठाकुर
जब मेरा पासपोर्ट, चेक किया जाता है,इंदिरा गाँधी हवाई अड्डे पर,
क्योंकि मैं ब्रिटेन जा रहा हूँ,
तब मुझे एहसास होता है,
एक बार फिर पूरी तरह,
मैं भारत का नागरिक हूँ,
मुझे भारत में रहना चाहिये,
और अच्छे नागरिक की तरह समय रहते वापस लौट जाना चाहिये।
फिर जब मैं हीथ्रो पहुँचता हूँ, लन्दन के उस विशालकाय एयरपोर्ट पर,
दो अलग अलग लाइनें, एक जो ब्रिटिश नागरिक हैं,
वे उस पंक्ति में खड़े होंगे, जहाँ उनसे देश को कम खतरा है,
जहाँ उनकी ज्यादा पूछताछ की जरूरत नहीं,
जहाँ से उनका हक बनता है, क्योंकि ये उनका घर है
और दूसरी तरफ वे लोग जो वहाँ बस आ ही गए हैं, मेहमान हैं वहाँ के,
कुछ दिनांें के लिये आए हैं, वापस चले जाएंगे, क्योंकि इनके रहने का हक नहीं है।
ये ब्रिटेन के नागरिक नहीं हैं, ये ‘‘बाहरवाले हैं, ये इंसान तो हैं, पर उस ग्रह के नहीं हैं,
ये किसी और दुनिया के लोग हैं, उतने ही आँख, नाक, कान, मुँह के साथ,
पर कुछ अलग किस्म के लोग, जिन्हें वहाँ नहीं रहना।
फिर लौटता हूँ दिल्ली, वहीं इन्दिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा,
अब की मैं फर्राटें से भागता फिरूँ,
क्योंकि यह मेरा घर है, और वे तमाम लोग जो इंसान तो हैं,
पर यहाँ के नहीं हैं,
इसीलिये उनकी बाकायदा चेकिंग जरूरी है,
क्योंकि अपने देश के बाहर, बिना तमाम अनुमति के,
बिना कई तरह के आदेशों के रहना गुनाह है,
बहुत बड़ा गुनाह, शायद सबसे बड़ा इंसानी गुनाह।