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स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
चाहे जो हो धर्म तुम्हारा चाहे जो वादी हो।
-उदय प्रताप सिंह
उदय प्रताप सिंह चाहे जो हो धर्म तुम्हारा चाहे जो वादी हो।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो
जिसके पर्वत खेत घाटियों में अक्षय क्षमता है,
जिसकी नदियों की भी हम पर माँ जैसी ममता है
जिसकी गोद भरी रहती है माटी सदा सुहागिन,
ऐसी स्वर्ग सरीखी धरती पीडि़त या हतभागिन?
तो चाहे तुम रेशम धारो या पहने खादी हो।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो।
अगर देश मर गया तो बोलो जीवित कौन रहेगा?
और रहा भी अगर तो उसको जीवित कौन कहेगा?
माँग रही है कर्ज़ जवानी सौ-सौ सर कट जाएँ,
पर दुश्मन के हाथ न माँ के आँचल तक आ पाएँ
जीवन का है अर्थ तभी तक जब तक आजादी हो।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो।
चाहे हो दक्षिण के प्रहरी या हिम़गिरी वासी हो,
चाहे राजा रंगमहल के हो या सन्यासी हो
चाहे शीश तुम्हारा झुकता हो मस्जिद के आगे,
चाहे मंदिर गुरूद्वारे में भक्ति तुम्हारी जागे
भले विचारों में कितना ही अंतर बुनियादी हो।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो।
डॉ0 लोहिया की कलम से
‘‘भारत की आजादी के लिए डा0 लोहिया ने कई बार कारावास की कठोर व क्रूर यातनायें झेली लेकिन स्वतंत्रता का कंटकाकीर्ण पथ नहीं छोड़ा। 1944-45 में उन्हें आगरा सेण्ट्रल जेल में बंदी बनाकर भयंकर पीड़ा दी गई जिसका वर्णन उन्होंने अपने वकील श्री मदन पित्ती को दिए गए वक्तव्य में किया है। 27 अक्टूबर 1945 को आगरा की जेल में दिए गए इस ऐतिहासिक बयान से स्पष्ट होता है कि ब्रिटानिय...