स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
चाहे जो हो धर्म तुम्हारा चाहे जो वादी हो।
-उदय प्रताप सिंह
चाहे जो हो धर्म तुम्हारा चाहे जो वादी हो। नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो
जिसके पर्वत खेत घाटियों में अक्षय क्षमता है,
जिसकी नदियों की भी हम पर माँ जैसी ममता है
जिसकी गोद भरी रहती है माटी सदा सुहागिन,
ऐसी स्वर्ग सरीखी धरती पीडि़त या हतभागिन?
तो चाहे तुम रेशम धारो या पहने खादी हो।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो।
अगर देश मर गया तो बोलो जीवित कौन रहेगा?
और रहा भी अगर तो उसको जीवित कौन कहेगा?
माँग रही है कर्ज़ जवानी सौ-सौ सर कट जाएँ,
पर दुश्मन के हाथ न माँ के आँचल तक आ पाएँ
जीवन का है अर्थ तभी तक जब तक आजादी हो।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो।
चाहे हो दक्षिण के प्रहरी या हिम़गिरी वासी हो,
चाहे राजा रंगमहल के हो या सन्यासी हो
चाहे शीश तुम्हारा झुकता हो मस्जिद के आगे,
चाहे मंदिर गुरूद्वारे में भक्ति तुम्हारी जागे
भले विचारों में कितना ही अंतर बुनियादी हो।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो।