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नवीन लेख
आज हमारी दुनिया और देश की स्थिति जितनी बेहतर होनी चाहिए, नहीं है। जो दुःख-दर्द, दंश, दलन, दुर्भाग्य व दूर्वाग्रह पिछली सदी के पूर्वार्द्ध (1900-1950) के दौरान थे, कमोबेश वर्तमान सदी के पूर्वार्द्ध में भी वैसे ही हैं, थोड़ा दृश्यरूप में भले ही प्रतीत हो रही है, किन्तु तत्वतः आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, मानसिक व सांस्कृतिक विसंगतियाँ, विषमतायें व विडम्बनायें वैसी ही हैं। अभी वही है निजामे कोहना, अभी तो जुल्मो-सितम है अभी मैं किस तरह मुस्कुराऊँ अभी तो रंजोअलम वही है, अभी वही है उदास राहें, वहीं हैं तरसी हुई निगाहें, शहर के पैगम्बरों से कह दो यहाँ अभी शामे-गम वही है। निराला का ‘‘स्वप्निल सवेरा’’ और साह...
सम्पादकीय
डॉ0 राममनोहर लोहिया एक साथ कई किरदारों को निभाने वाले अप्रतिम विभूति थे, वे जितने महान चिंतक थे, उतने ही बड़े विद्वान और उससे कहीं अधिक बड़े राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक, यदि इतिहास की वस्तुपरक तात्विक विवेचना करें तो डॉ0 लोहिया अग्रिम पंक्ति में खड़े क्रांतिधर्मी सत्याग्रही प्रतीत होते हैं। डा0 लोहिया ने भ...
दीपक मिश्र
अतिथि सम्पादक की कलम से
भारत की आजादी की लड़ाई सही मायने में बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में निर्णायक मोड़ पर पहुँची। इसे सिर्फ संयोग कह कर खारिज नहीं किया जा सकता कि इसी काल-खण्ड में समाजवादी आंदोलन का सूत्रपात व विस्तार हुआ, पाँचवे दशक में देश आजाद हो गया। मुगल बादशाह जहाँगीर (1605-1627ई0) के समय प्रथम अंग्रेज मिशन कैप्टन हॉकिन्स भ...
शिवपाल यादव
पत्र लेखन
डॉ0 लोहिया की कलम से
‘‘भारत की आजादी के लिए डा0 लोहिया ने कई बार कारावास की कठोर व क्रूर यातनायें झेली लेकिन स्वतंत्रता का कंटकाकीर्ण पथ नहीं छोड़ा। 1944-45 में उन्हें आगरा सेण्ट्रल जेल में बंदी बनाकर भयंकर पीड़ा दी गई जिसका वर्णन उन्होंने अपने वकील श्री मदन पित्ती को दिए गए वक्तव्य में किया है। 27 अक्टूबर 1945 को आगरा की जेल में दिए गए इस ऐतिहासिक बयान से स्पष्ट होता है कि ब्रिटानिय...