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स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
उसके हिस्से का सुख
-सुचिता श्रीवास्तव
नवाबों के शहर में, पीपल, बरगद, नीम के छांव में नहीं, कड़ी धूप के साये में,
गली, मुहल्ले या मकान में नहीं, सड़क के किनारे खुले में,
वो स्त्री अपने पति के साथ मिलकर बुन रही है चटाई और चिक,
काट कर छील कर बांस की पतली डंडियां, चाकू और छुरियों से
फिर भर रही है उन चटाइयों और चिकों में, हल्दी जैसा गाढ़ा पीला रंग
वह भरेगी अभी कुछ देर में उनमें, लाल, हरे, नीले, गुलाबी, नारंगी रंग
वो स्त्री केवल चटाई और चिक ही नहीं बुन रही है,
वह बुन रही है अपने सपनों को भी साथ-साथ
और भर रही है साथ ही अपनी कल्पनाओं में रंग,
उसके मन में ख़्वाब तैर रहे हैं ढेंरों
शायद कभी उसे नसीब होगी पीपल की छांव, या फिर उसे मिल सकेगी कोई झोपड़ी
फटी और पैबंद लगी धोती की जगह, उसके तन पर एक मुकम्मल साड़ी होगी
मिटाती में खेलता उसका लल्ला, शायद दाखिल हो जायेगा किसी स्कूल में
और पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बनेगा, फिर कट जायेंगे उसके सारे दुःख दर्द
चटाइयों चिकों की तरह संवर जायेगा उसका भविष्य, भर जायेंगे जीवन में कई सारे रंग
बाँस को छीलने से सख्त हुई हथेली मुलायम हो जायेगी और भर जायेंगे उनमें गहरे हुए जख्म
अचानक मुझे ख्याल आता है, कहाँ लगाते हैं आजकल लोग घरों में चिक
संगमरमर की दीवार पर तो एयरकंडीशन लगते हैं,
और फर्श पर चटाई नहीं इम्पोर्टेड कालीन बिछती है
पर यह उस स्त्री को बताना नहीं चाहती थी
मैं कल्पना में छिपी उसकी खुशी की दुश्मन क्यों बनती
क्यों हत्या करती मैं उसके सपनों का, क्यों छीनती उसके हिस्से का थोड़ा सा सुख......

ए-909/2, इन्दिरानगर, लखनऊ-9838622156

डॉ0 लोहिया की कलम से
‘‘भारत की आजादी के लिए डा0 लोहिया ने कई बार कारावास की कठोर व क्रूर यातनायें झेली लेकिन स्वतंत्रता का कंटकाकीर्ण पथ नहीं छोड़ा। 1944-45 में उन्हें आगरा सेण्ट्रल जेल में बंदी बनाकर भयंकर पीड़ा दी गई जिसका वर्णन उन्होंने अपने वकील श्री मदन पित्ती को दिए गए वक्तव्य में किया है। 27 अक्टूबर 1945 को आगरा की जेल में दिए गए इस ऐतिहासिक बयान से स्पष्ट होता है कि ब्रिटानिय...