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स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
भारत के युवाओं को आजादी के बाद जितना डा0 राममनोहर लोहिया ने आकर्षित किया उतना शायद किसी राजनेता ने किया हो। उनके ज्ञान व त्याग से प्रभावित होने वाले युवाओं में एक नाम जस्टिस राजेन्द्र सच्चर का भी है। ‘‘सच्चर कमेटी’’ की सिफारिशों में डा0 लोहिया के ‘‘विशेष अवसर के सिद्धान्त की झलक साफ-साफ दिखती है।It was in fortuitous circumstances that brought me near to Dr. Ram Manohar Lohia. In May 1949, the Socialist Party under Dr. Lohia's leadership held a demonstration before Nepal embassy at Bara Khamba Road, New Delhi to protest against the take over of Nepal govt. by Rana and the forced fleeing of King. We were arrested (about 50 of us including Dr. Lohia). for-violating Section 144 CRPC. As a policy decision had been taken that none of us would be asking for bail - our prosecution was being done in jail -(apparently the government was too embarrassed to prosecute Dr. Lohia in open court.) So we remained in jail for a month and half Dr. Lohia had an informal and easy mixing temperament. He liked to sit with all of us, exchanged serious policy matters and also light...
न्यायमूर्ति राजेंद्र सच्चर
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(‘‘सामाजिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में गहरी अभिरुचि रखने वाले सिग्नस ग्रुप के अध्यक्ष के0के0 सिंघानिया डा0 लोहिया से व्यक्तित्व से प्रभावित हैं। बंगाल से ताल्लुक रखने वाले समाजसेवी श्री सिंघानिया का यह लेख डा0 लोहिया का बंगाल की राजनीतिक व क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ाव की ओर दर्पण करता है। डा0 लोहिया का बंगाल से वही सम्बन्ध था जो कृष्ण का यशोदा व नंदगाँव से था।’’) डा0 राममनोहर लोहिया का उल्लेख बंगाल की क्रांतिकारी धरती के बगैर कभी पूरा नहीं हो सकता। यदि बंगाल को डा0 लोहिया की ‘यशोदा’ की संज्ञा दी जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। 1927 में वाराणसी से इण्टर पास कर वे कलकत्ता आ गए। यहाँ वे तार...
जब मोराजी देसाई ने श्रीमती मृणाल गोरे को मार्च 1977 में स्वास्थ्य मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा, तो मुंबई की इस अड़तालीस वर्षीया सोशलिस्ट सांसद ने अस्वीकार कर दिया था। कारण दिया था कि वे जनता के बीच रहना और काम करना चाहती हैं। सांसद मधु लिमये ने भी ऐसा ही किया। तब जनता पार्टी के प्रधानमंत्री ने अन्य लोहियावादी सांसद राजनारायण और जार्ज फर्नाडिस को काबीना में शामिल किया था। मुंबई के निकटवर्ती वसई नगर में निधन के दिन (जुलाई 2012) श्री मृणाल गोरे राष्ट्रपति के निर्वाचन में रूचि लेती रहीं। हालांकि चैरासी वर्ष की आयु में स्वास्थ्य क्षीण हो गया था अंग्रेजी और पुर्तगाली साम्राज्यवादियों (गोवा में) से...
मणिपुर की जनता महात्मा गांधी के बाद महान नेताओं में सबसे अधिक सम्मान डा0 लोहिया का करती है। मैं पहली बार डा0 साहब से वर्धा में आयोजित समाजवादियों के सम्मेलन में मिला था। आजादी के बाद मणिपुर में प्रवेश के लिए अलग से अनुमति लेनी पड़ती थी। 1952 में मुझे लोहिया जी से सोशलिस्ट पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ाया और मैं जीता। 1954 में डा0 लोहिया मणिपुर बिना सरकारी अनुमति के आए, सत्याग्रह किया और मणिपुरवासियों के मन में यह बात डाली कि वे भारत के अभिन्न अंग हैं। लोहिया जी के आंदोलन में आदिवासियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया, पुलिस की यातना सही, भारत सरकार को अन्ततोगत्वा मणिपुर को अन्य प्रांत से विभेद करने वाला कानून ...
डा0 राममनोहर युवाओं को अग्रिम पंक्ति में लाकर समाज की बागडोर सौंपना चाहते थे। उनकी अवधारणा थी कि युवा उत्साही होता है, समझौतावादी नहीं, उसमें आदर्श के प्रति आग्रह होता है, जब वह सत्याग्रहों, राजनीतिक गतिविधियों तथा सामाजिक कार्यों में अभिरुचि लेगा तो समाज को दोहरा लाभ मिलेगा। वर्तमान और भविष्य दोनों मजबूत होंगे। डा0 लोहिया ने प्रतिभाशाली युवाओं की बड़ी संख्या को स्वतंत्रता संग्राम और समाजवादी आंदोलन से जोड़ा। वे स्वयं जब आजादी के संघर्ष में पूरी तरह उतरे थे मात्र 21 वर्ष के थे। 32 वर्ष तक आते-आते पूरे देश के सर्वाधिक चर्चित नेताओं में एक हो गए। 60 के दशक में डा0 लोहिया युवाओं की आकांक्षा के स...
इतिहास के पन्नों में ऐसी कई सत्य घटनाएं छिपी हैं जो सोचने और विचारने की दिशा परिवर्तित कर देती हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि नई पीढ़ी के सामने सत्य को पूरी निष्ठा के साथ नहीं रखा जा रहा है। आज जब हम समाजवाद की चर्चा करते हैं तो जिहन में बस कुछ मौजूदा नेताओं के नाम उभर कर सामने आते हैं। नई पीढ़ी के लिए समाजवाद शायद अब कोई विषय नहीं है और हिंदुस्तान में इसके प्रणेता डा0 राममनोहर लोहिया बस इतिहास के पन्नों में दर्ज एक नाम की तरह हैं। आजादी के आंदोलन में समाजवादियों की भूमिका का सवाल यदि आप सामने रखें तो बहुत से लोगों को जानकारी ही नहीं है। मैं आपको इतिहास में वापस ले चलता हूँ ताकि आप जान सकें कि भारत ...
स्वतंत्रता व समाजवाद की स्थापना में मुसलमानों की भूमिका पर काफी कम लिखा गया है। मुस्लिमों ने आजादी के लिए हिन्दू भाइयों के साथ मिलकर अंगे्रेजों से लडाई लड़ी और जंग-ए-आजादी में अपना सबकुछ लुटा दिया। अश्फाकउल्ला खान के बारे में कौन नहीं जानता ? मौलाना मोहम्मद अली जौहर की शहादत मुल्क कैसे भूल सकता है? एम0 रहीमतुल्ला सयानी (1996), सैयद मुहम्मद बहादुर (1913), सैयद हसन इमाम (1918), हकीम अजमल खान (1921), मौलाना अबुल कलाम आजाद (1923), मौलाना मुहम्मद अली सदृश नेताओं ने कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवायें दी। जब भारत छोड़ो आंदोलन का सूत्रपात हुआ था तो मौलाना अबुल कलाम आजाद कांगे्रस के अध्यक्ष थे। मौलाना का समाजव...
गोवा 1498 में पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा के आने के बाद पुर्तगालियों की दृष्टि में आया। 17वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध तक यहाँ पुर्तगालियों का कब्जा हो गया। भारत के आजाद होने के बाद भी गोवा गुलाम रहा और 19 दिसम्बर 1961 को मुक्त हुआ। गोवा की आजादी का सिंहनाद डा0 लोहिया ने किया था। वहाँ के लोकगीतों में डा0 लोहिया का वर्णन पौराणिक नायकों की तरह होता है। मो0 आजम का यह लेख इसी इतिहास की ओर इशारा करता है। यदि गोवा की आजादी का श्रेय किसी एक व्यक्ति को देना हो तो वे डा0 राममनोहर लोहिया है, जिन्होंने पहली बार गोवा के आजादी के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बनाया और अस्वस्थता के बावजूद गोवा मुक्ति संग्राम ...
पूरे देश के साथ स्वतंत्रता दिवस और गणराज्य दिवस मनाने के अतिरिक्त गोवावासी प्रतिवर्ष 18 जून को गोवा क्रांति दिवस भी मनाते हैं। स्मरणीय है कि इसी दिन 1946 में डा0 राममनोहर लोहिया अपने एक मित्र एवं सहपाठी डा0 मेनजीस के निमंत्रण पर कुछ दिनो के लिए गोवा गए थे। वहाँ उन्हें ज्ञात हुआ कि गोवावासियों को सभा लेने का सामान्य नागरिक अधिकार भी प्राप्त नहीं है। उसी समय उन्होंने वहाँ गोवावासियों की आजादी की प्राप्ति के लिए मडगांव में सविनय अवज्ञा पूर्वक कानून तोड़ते हुए सभा लेकर संघर्ष करने का आह्वान किया। गोवा प्रदेश की भूमि पर डा0 लोहिया का दिया हुआ भाषण वहां हिन्दी में दिया गया पहला भाषण था। जिस स्थान ...
आजादी की लड़ाई के दौरान महाराष्ट्र समाजवादियों का केन्द्र बन चुका था। गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक का महाराष्ट्र स्वतंत्रता संग्राम में आगे तो था ही 20वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में देखते-ही-देखते समाजवादी आंदोलन की भी धुरी बन गया। आचार्य नरेन्द्र देव, डा0 लोहिया व जयप्रकाश के बाद ज्यादातर अखिल भारतीय नेता महाराष्ट्र के ही रहे। नारायण गणेश गोरे, पाडुरंग सदाशिव साने (साने गुरू जी), अच्युत पटवर्धन, नारायण गणेश गोरे, गंगाधर ओंगले, केशव गोंरे, माधव लिमये, दत्तू साठे, विनायक राव कुलकर्णी, अशोक मेहता, उषा मेहता, तारकुंडे डी0 मिलो, के अलावा मधु लिमये और श्रीधर महादेव जोशी बसंत बापट सदृश नेता...
सम्पादकीय
डॉ0 राममनोहर लोहिया एक साथ कई किरदारों को निभाने वाले अप्रतिम विभूति थे, वे जितने महान चिंतक थे, उतने ही बड़े विद्वान और उससे कहीं अधिक बड़े राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक, यदि इतिहास की वस्तुपरक तात्विक विवेचना करें तो डॉ0 लोहिया अग्रिम पंक्ति में खड़े क्रांतिधर्मी सत्याग्रही प्रतीत होते हैं। डा0 लोहिया ने भ...
दीपक मिश्र
अतिथि सम्पादक की कलम से
भारत की आजादी की लड़ाई सही मायने में बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में निर्णायक मोड़ पर पहुँची। इसे सिर्फ संयोग कह कर खारिज नहीं किया जा सकता कि इसी काल-खण्ड में समाजवादी आंदोलन का सूत्रपात व विस्तार हुआ, पाँचवे दशक में देश आजाद हो गया। मुगल बादशाह जहाँगीर (1605-1627ई0) के समय प्रथम अंग्रेज मिशन कैप्टन हॉकिन्स भ...
शिवपाल यादव
पत्र लेखन
डॉ0 लोहिया की कलम से
‘‘भारत की आजादी के लिए डा0 लोहिया ने कई बार कारावास की कठोर व क्रूर यातनायें झेली लेकिन स्वतंत्रता का कंटकाकीर्ण पथ नहीं छोड़ा। 1944-45 में उन्हें आगरा सेण्ट्रल जेल में बंदी बनाकर भयंकर पीड़ा दी गई जिसका वर्णन उन्होंने अपने वकील श्री मदन पित्ती को दिए गए वक्तव्य में किया है। 27 अक्टूबर 1945 को आगरा की जेल में दिए गए इस ऐतिहासिक बयान से स्पष्ट होता है कि ब्रिटानिय...