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स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
(डा0 राम मनोहर लोहिया के साथ ‘‘इंकलाब’’ नामक मासिक पत्रिका निकालने वाली अरुणा अरुणा आसफ अली को आजादी की लड़ाई और उसके बाद समाजवादी आंदोलन में सशक्त व सतत भूमिका निभाने के लिए सदैव याद किया जाएगा। उन्हें 1997 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत-रत्न से विभूषित किया गया। उन्होंने 1928 में प्रख्यात अधिवक्ता एम0 आसफ अली से विवाह कर जातीय रूढि़वाद को सीधी चुनौती दी। वे भारत में आदर्श नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं) 1942 में विद्रोहात्मक आंदोलन में जिन महिलाओं के नाम उभर कर राष्ट्रीय ख्याति अर्जित करने में सफल हुए, उनमें सर्वप्रथम नाम अरुणा अरुणा आसफ अली का ही लिया जाता है। अपने सशक्त भूमिगत आंदोल...
आजादी की लड़ाई के दौरान बिहार में 17 मई 1934 को आचार्य नरेन्द्र देव जी की अगुवाई में कांगे्रस सोशलिस्ट पार्टी का गठन अंजुमन इस्लामिया हाल में हुआ था, इसके पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण, फूलन प्रसाद वर्मा, बाबा दामोदरदास, अब्दुल बारी, गंगाशरण सिंह जैसे नेताओं ने बिहार सोशलिस्ट पार्टी बना ली थी। बाबा दामोदरदास बाद में साहित्य के क्षेत्र में राहुल सांस्कृत्यायन के नाम से प्रसिद्ध हुए। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सबसे बड़ी घटना हजारीबाग जेल तोड़ने की है। 8 नवम्बर 1942 को दीवाली की रात अमावस के घने अंधेरे में योगेन्द्र शुक्ल, रामनंदन मिश्र, सूरज नारायण सिंह, शालिग्राम सिंह, गुलाबचन्द गुप्त तथा जय प्र...
8 नवम्बर 1942 को हजारीबाग जेल तोड़ने के लगभग 10 महीने बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण को अमृतसर रेलवे स्टेशन पर ब्रिटानिया ने गिरफ्तार किया। उन्हें हथकड़ी और बेड़ी पहनाकर लाहौर के निकट के स्टेशन मुगलपुरा पर करीब डेढ़ दर्जन हथियारबंद सिपाहियों की घेराबंदी के बीच उतारा गया। 18 सितम्बर 1943 को लाहौर जेल लाया गया जहाँ घोर यातना व प्रताड़ना दी गई। उन्हें कुर्सी पर बाँध कर बिठा कर घंटो अनावश्यक सवाल किए जाते। बाल पकड़कर झिंझोड़ा जाता, कभी-कभी हंटर से नंगे बदन पर पिटाई की जाती। कमरे में यातना के सामान हंटर, सरिया, जंजीर आदि रखा जाता जो प्रत्यक्ष पिटाई से अधिक मानसिक तनाव देती। उनके बगल के दूसरे बैरक में डा0 ...
भारत में विभिन्न प्रकार के धर्म पाये जाते है और उन धर्मों के अनुसार भारतीय समाज में नाना प्रकार की परम्पराएं और प्रथाऐं प्रचलित हैं, इन सबमें भारतीय समाज, भारतीय साहित्य, सभ्यता और संस्कृति, भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीति को एक बड़े पैमाने तक प्रभावित किया है। इस प्रभाव की विचित्रताओं, विशिष्टताओं और विभिन्नताओं को दृष्टिगत रखते हुए यदि यह कहा जाये कि भारत विभिन्न धर्मों का अजायबघर है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। शायद ही कोई भारतीय चिन्तक ऐसा हो जो भारत में विद्यमान धर्म या धर्मों से प्रभावित न हुआ हो। लोहिया के समय भारतीय राजनीति में धर्म को मिलाने और राजनीतिक सत्ता की तुलना में उसे...
(‘‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिन नारों ने पूरे देश के मन-मस्तिष्क को झंकृत किया था उसमें ‘साइमन गो बैक’ का नारा महत्त्वपूर्ण है। 1928-29 में यह नारा प्रत्येक भारतीय के होठों पर ‘वंदेमातरम्’ की तरह उच्चरित होता था। इसे दिया था भारतीय समाजवादी आंदोलन के पहरुआ ओर कांगे्रस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य युसूफ मेहर अली ने। उनके बहाने समाजवादियों की आजादी की लड़ाई में योगदान को रेखांकित करने वाला एक संग्रहणीय लेख।’’) यह सभी जानते हैं कि ‘‘स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, हम इसे लेकर रहेंगे’’ के मंत्रदाता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक थे। ‘‘अंगे्रजों भारत छोड़ो’’ का उद्घोष गांधीजी क...
(‘‘समाजवादी पार्टी के संस्थापक महासचिव बाबू कपिलदेव सिंह ने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत भारत छोड़ो आन्देालन से ही की। बाबू कपिलदेव स्वतंत्रता संग्राम व समाजवादी आंदोलन के उन मूर्धन्य मनीषियों में से एक हैं जिनका सम्पूर्ण जीवन समाजवाद को समर्पित रहा। नई पीढ़ी उनके इस ज्ञानवर्द्धक लेख से प्रेरणा ले जिसमें भारत के जीवंत इतिहास का वस्तुपरक लेखा-जोखा है। स्वतंत्रता तथा समाजवाद के आदर्शों व मूल्यों के लिए उन्होंने ‘‘नेताजी’’ मा0 मुलायम सिंह की अगुवाई में ऋषि परम्परा के ‘‘छोटे लोहिया’’ जनेश्वर मिश्र व ईमानदारी की प्रतिमूर्ति रामशरण दास सदृश समाजवादियों का जुटान कर समाजवादी पार्टी की स्थ...
‘‘भारत की आजादी के लिए डा0 लोहिया ने कई बार कारावास की कठोर व क्रूर यातनायें झेली लेकिन स्वतंत्रता का कंटकाकीर्ण पथ नहीं छोड़ा। 1944-45 में उन्हें आगरा सेण्ट्रल जेल में बंदी बनाकर भयंकर पीड़ा दी गई जिसका वर्णन उन्होंने अपने वकील श्री मदन पित्ती को दिए गए वक्तव्य में किया है। 27 अक्टूबर 1945 को आगरा की जेल में दिए गए इस ऐतिहासिक बयान से स्पष्ट होता है कि ब्रिटानिया हुकूमत कितनी जालिम थी और हमारे अजदादों-पूर्वजों ने कितना जुल्म सहा है।’’ पंजाब हाईकोर्ट को 13 दिसम्बर, 1944 और 19 जनवरी, 1945 को दिए गए आवेदन पत्र में मैंने लाहौर किले में अपनी नजरबन्दी का संक्षिप्त विवरण दिया है। उसे मैं यहाँ संक्षेप में और जल्...
(1936 में लार्ड लिनलिथगो भारत के वायसराय बन कर आए। वे यहाँ 1944 तक रहे, यह दौर काफी उच्चावचन भरा रहा। द्वितीय विश्वयुद्ध फारवर्ड ब्लॉक गठन,अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन, क्रिप्स मिशन जैसी घटनायें इनके ही कार्यकाल में हुई। इनका मानना था कि सोशलिस्टों के कारण ही भारत छोड़ो आंदोलन इतना सफल व उन्मादी रहा। डा0 लोहिया ने इन्हे पत्र लिखकर आगाह किया था कि क्रांति की राह का रोड़ा न बनें।) प्रिय लार्ड लिनलिथगो, मैं नहीं जानता कि मैं आपको यह क्यों लिख रहा हूँ? मैं आपकी व्यवस्था से कुछ भी अपेक्षा नहीं रखता। घूसखोरी और कत्लेआम जो आपके नीचे हो रहा है और वह ताकत जिसका मैं प्रतिनिधित्व करता हूँ मेरे देश में साथ-स...
(ब्रिटिश लेबर पार्टी के अध्यक्ष हेराल्ड लास्की की गणना दुनिया के श्रेष्ठ राजनीतिकों, चिंतकों, विद्वानों और फेबियन समाजवाद के व्याख्याताओं में होती है। वेयर सोशलिज्म स्टैण्ड टुडे (Where Socialism Stand Today) तथा सोशलिस्ट लैंडमार्क (Socialist Landmark) उनके द्वारा लिखी पुस्तकंे हैं जिन्हें समाजवाद की गीता की संज्ञा दी जाती है। डा0 लोहिया का यह पत्र एक दस्तावेज है जो समाजवादी वैचारिकी की अनुपम धरोहर है। उल्लेखनीय है कि लास्की ने भारत के आजादी की पैरवी की थी। प्रिय प्रो. लास्की, अभी मेरे देश ने आपकी संसद के प्रश्नकाल के बारे में जाना है। मैं आपको बताने जा रहा हूँ जिसके बारे में आप नहीं जानते। भारत के अंडर सेक्रेटरी आर...
(उषा मेहता ने आजादी की लड़ाई में डा0 लोहिया के सहयोग व मार्गदर्शन से गुप्त रेडियो की स्थापना की, इस रेडियो से महान नेताओं के भाषण तथा वक्तव्य प्रसारित होते थे। गुप्त रेडियो के प्रसारण के कारण ब्रिटानिया हुकूमत ने उषा जी को चार साल कठोर कारावास में रखा। प्रस्तुत है भारत की प्रथम पंक्ति समाजवादी वीरांगना उषा मेहता का एक प्रेरणादायी संस्मरण.) जब 8 अगस्त का प्रस्ताव परित किया गया तब हम लोग उस वक्त वहां क्रान्ति मैदान जिसे उस वक्त ग्वालिया टैंक मैदान कहा जाता था। वहां हाजिर थे। तो बापू व अन्य नेताओं ने हम लोगों से कहा कि हमें कोई न कोई ऐसी कार्यवाही करनी चाहिए जिससे भारत छोड़ो आन्दोलन को कोई मदद...
सम्पादकीय
डॉ0 राममनोहर लोहिया एक साथ कई किरदारों को निभाने वाले अप्रतिम विभूति थे, वे जितने महान चिंतक थे, उतने ही बड़े विद्वान और उससे कहीं अधिक बड़े राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक, यदि इतिहास की वस्तुपरक तात्विक विवेचना करें तो डॉ0 लोहिया अग्रिम पंक्ति में खड़े क्रांतिधर्मी सत्याग्रही प्रतीत होते हैं। डा0 लोहिया ने भ...
दीपक मिश्र
अतिथि सम्पादक की कलम से
भारत की आजादी की लड़ाई सही मायने में बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में निर्णायक मोड़ पर पहुँची। इसे सिर्फ संयोग कह कर खारिज नहीं किया जा सकता कि इसी काल-खण्ड में समाजवादी आंदोलन का सूत्रपात व विस्तार हुआ, पाँचवे दशक में देश आजाद हो गया। मुगल बादशाह जहाँगीर (1605-1627ई0) के समय प्रथम अंग्रेज मिशन कैप्टन हॉकिन्स भ...
शिवपाल यादव
पत्र लेखन
डॉ0 लोहिया की कलम से
‘‘भारत की आजादी के लिए डा0 लोहिया ने कई बार कारावास की कठोर व क्रूर यातनायें झेली लेकिन स्वतंत्रता का कंटकाकीर्ण पथ नहीं छोड़ा। 1944-45 में उन्हें आगरा सेण्ट्रल जेल में बंदी बनाकर भयंकर पीड़ा दी गई जिसका वर्णन उन्होंने अपने वकील श्री मदन पित्ती को दिए गए वक्तव्य में किया है। 27 अक्टूबर 1945 को आगरा की जेल में दिए गए इस ऐतिहासिक बयान से स्पष्ट होता है कि ब्रिटानिय...