स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
कभी-कभी जीवन के स्मृति पटल पर कुछ घटनायें, कुछ चेहरे और कुछ अविस्मरणीय क्षण स्थायी रूप से अंकित हो जाते हैं जिनकी अनुभूतियों, चुभन व स्पंदन को शब्दों में व्यक्त करना दुष्कर होता है। ‘‘मूकास्वाद्नवत्’’ बातें हृदय में तरंगों की तरह आती हैं, एक छटपटाहट व कसीली कसमसाहट सी छोड़कर जाने कहाँ चली जाती हैं। उसके बाद बचती है सिर्फ निस्तब्ध खामोशी की अनुगूँज जिसे मैं सुन तो सकता हूँ पर सुना नहीं सकता। उस जगमगाती रात की स्याह सुबह आज भी याद है, ऐसा लगता है मानो कल की ही बात हो। पहली बार जीवन में महसूस किया कि ‘‘सच’’ कितना निष्ठुर, निर्मम, निहंग, निरीह और निर्लज्ज होता है? अपनी लाश आप उठाकर जीने की जिजीवि...