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स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
कभी-कभी जीवन के स्मृति पटल पर कुछ घटनायें, कुछ चेहरे और कुछ अविस्मरणीय क्षण स्थायी रूप से अंकित हो जाते हैं जिनकी अनुभूतियों, चुभन व स्पंदन को शब्दों में व्यक्त करना दुष्कर होता है। ‘‘मूकास्वाद्नवत्’’ बातें हृदय में तरंगों की तरह आती हैं, एक छटपटाहट व कसीली कसमसाहट सी छोड़कर जाने कहाँ चली जाती हैं। उसके बाद बचती है सिर्फ निस्तब्ध खामोशी की अनुगूँज जिसे मैं सुन तो सकता हूँ पर सुना नहीं सकता। उस जगमगाती रात की स्याह सुबह आज भी याद है, ऐसा लगता है मानो कल की ही बात हो। पहली बार जीवन में महसूस किया कि ‘‘सच’’ कितना निष्ठुर, निर्मम, निहंग, निरीह और निर्लज्ज होता है? अपनी लाश आप उठाकर जीने की जिजीवि...
सम्पादकीय
डॉ0 राममनोहर लोहिया एक साथ कई किरदारों को निभाने वाले अप्रतिम विभूति थे, वे जितने महान चिंतक थे, उतने ही बड़े विद्वान और उससे कहीं अधिक बड़े राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक, यदि इतिहास की वस्तुपरक तात्विक विवेचना करें तो डॉ0 लोहिया अग्रिम पंक्ति में खड़े क्रांतिधर्मी सत्याग्रही प्रतीत होते हैं। डा0 लोहिया ने भ...
दीपक मिश्र
अतिथि सम्पादक की कलम से
भारत की आजादी की लड़ाई सही मायने में बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में निर्णायक मोड़ पर पहुँची। इसे सिर्फ संयोग कह कर खारिज नहीं किया जा सकता कि इसी काल-खण्ड में समाजवादी आंदोलन का सूत्रपात व विस्तार हुआ, पाँचवे दशक में देश आजाद हो गया। मुगल बादशाह जहाँगीर (1605-1627ई0) के समय प्रथम अंग्रेज मिशन कैप्टन हॉकिन्स भ...
शिवपाल यादव
पत्र लेखन
डॉ0 लोहिया की कलम से
‘‘भारत की आजादी के लिए डा0 लोहिया ने कई बार कारावास की कठोर व क्रूर यातनायें झेली लेकिन स्वतंत्रता का कंटकाकीर्ण पथ नहीं छोड़ा। 1944-45 में उन्हें आगरा सेण्ट्रल जेल में बंदी बनाकर भयंकर पीड़ा दी गई जिसका वर्णन उन्होंने अपने वकील श्री मदन पित्ती को दिए गए वक्तव्य में किया है। 27 अक्टूबर 1945 को आगरा की जेल में दिए गए इस ऐतिहासिक बयान से स्पष्ट होता है कि ब्रिटानिय...