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स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी आंदोलन व डॉ0 लोहिया
अनूठे व महान थे डा0 राममनोहर लोहिया
-अटल बिहारी बाजपेयी
अटल बिहारी बाजपेयी (‘‘अटल बिहारी वाजपेयी भी डा0 लोहिया के विचारों से प्रेरित रहे हैं। 1992 में पद्भविभूषण से विभूषित भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी अक्सर डा0 साहब के यहाँ आकर राजनैतिक ज्ञान अर्जित किया करते थे। लगभग दर्जन भर पुस्तकों के लेखक अटल जी का यह लेख अनुचिन्तन के प्रवेशांक में भी प्रकाशित हो चुका है।’’)

डा0 राममनोहर का व्यक्तित्व अनूठा और महान था। मैं उनकी गणना महान चिन्तकों में करता हूँ चिन्तक भी मौलिक चिन्तक। वे प्रतिबद्ध समाजवादी थे लेकिन व्यक्ति की गरिमा और स्वाधीनता में उनका अटूट विश्वास था। वे लोकतंत्र की बलि चढ़ाकर लाए गए समाजवाद के विरुद्ध थे। वे लोकतंत्र और समाजवाद दोनेां का मेल बैठाने के पक्ष में थे, समाजवाद में भी सामाजिक न्याय पर उनका विशेष बल था। मैैं उन दिनों जनसंघ में था। वे जनसंघ के प्रखर राष्ट्रवाद को पसंद करते थे लेकिन इस बात पर भी बल देते थे कि अगर प्रखर राष्ट्रवाद के साथ सामाजिक न्याय को नहीं जोड़ा गया तो राष्ट्रवाद रूमानी रहेगा, उसमें शक्ति पैदा नहीं होगी। वे स्वतंत्रता सेनानी रहे। उन्होंनेे गोवा का मामला सबसे पहले उठाया। उन्होंने अमरीका में रंगभेद के खिलाफ आन्दोलन चलाया। उनका राष्ट्रवाद अंतर्राष्ट्रीयवाद से जुड़ा हुआ था। वे समस्याओं को समग्रता में देखते थे, लेकिन किस समय कौन सी बात अधिक जरूरी है इसलिए उन्होंने विशेष अवसर के सिद्धान्त पर बल दिया। उनका कहना था कि विषम समाज में समान अवसर की बात करने का कोई अर्थ नहीं है। वे लोकतंत्र में ऐसी किसी व्यवस्था को स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने ‘‘हिमालय बचाओ सम्मेलन’’ किया। वे एवरेस्ट को ‘‘सागर-माथा’’ कहते थे। वे मूर्ति पूजा और मृत रूढि़यों के विरुद्ध थे। वे धार्मिक थे कर्मकाण्डी नहीं। उन्होंने राम, कृष्ण और शिव पर लिखा और धर्म को नई दृष्टि से देखा। डा0 लोहिया फक्कड़ और मस्तमौला थे। उनमें एक मजबूती थी जिसका वह दूसरों में भी संचार करते थे। उन्होंने अपने इर्द-गिर्द युवाओं की एक टोली खड़ी कर रखी थी। वे व्यक्तियों के पारखी और सच्चे अर्थों में देशभक्त और प्रामाणिक व्यक्ति थे। मैं डा0 लोहिया के यहाँ आता जाता रहता था। वे इस बात के हिमायती थे कि संसद में आवाज उठाने के लिए हर नियम का उपयोग किया जाय। उनकी इसी धारणा के कारण पंडित जवाहर लाल नेहरु के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव सोशलिस्ट पार्टी द्वारा लाया गया था। हालांकि हमने डा0 साहब से कहा था कि प्रस्ताव गिर जाएगा, इस पर चर्चा भी नहीं होगी इसलिए इस प्रस्ताव पर बल मत दीजिए। परन्तु लोहिया जी की सोच दूसरी ही थी। डा0 लोहिया इस बात पर बल देते थे कि शस्त्रागार में जितने भी हथियार हैं, सबका उपयोग करना चाहिए। डा0 लोहिया ने कई रचनात्मक कार्य किये, गरीबों पर बहस चलाई। उन्होंने मुसलमानों को साम्प्रदायिकता से हटाकर सच्चा राष्ट्रवादी और उदारवादी बनाया। उन्होंने कट्टरपंथ को पनपने नहीं दिया। वे हिन्दू धर्म में भी कट्टरता के खिलाफ थे। वे जातिवाद को तोड़ना चाहते थे। वे जिन मान्यताओं को स्वीकार नहीं करते थे। उन्हें देश की मिट्टी से प्यार और देश की संस्कृति के बारे में अभिमान था। डा0 लोहिया अमीरी और गरीबी के बीच एक और दस का अंतर करते थे। विषमता को पाटने के लिए डा0 लोहिया सत्ता के विकेन्द्रीकरण को अनिवार्य मानते थे। उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि जब तक सत्ता केन्द्र से हटकर राज्य जिला और ग्राम तक समान रूप से नहीं पहुँचेगी, तब तक साधनों का सही बँटवारा नहीं होगा। वे पूरी तरह देश की धरती पर जमे रहे मगर उनका मस्तिष्क आसमान की ऊँचाइयों पर था।
अनुक्रमण
डॉ0 लोहिया की कलम से
‘‘भारत की आजादी के लिए डा0 लोहिया ने कई बार कारावास की कठोर व क्रूर यातनायें झेली लेकिन स्वतंत्रता का कंटकाकीर्ण पथ नहीं छोड़ा। 1944-45 में उन्हें आगरा सेण्ट्रल जेल में बंदी बनाकर भयंकर पीड़ा दी गई जिसका वर्णन उन्होंने अपने वकील श्री मदन पित्ती को दिए गए वक्तव्य में किया है। 27 अक्टूबर 1945 को आगरा की जेल में दिए गए इस ऐतिहासिक बयान से स्पष्ट होता है कि ब्रिटानिय...